तारीफ शायरी हिंदी में

 अदा आई...!!! जफा आई...!!!
गरूर आया...!!! इताब आया...!!!
हजारों आफतें लेकर...!!!...!!!...!!!
हसीनों का शबाब आया...!!!

बड़ा ही दिलकश अंदाज है तुम्हारा...!!!
जी करता है की फनाह हो जाऊं ...!!!

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महक रही है जिंदगी आज भी जिसकी खुशबू से...!!!
वो कौन था जो यूँ गुजर गया मेरी यादों से...!!!

तुम्हारी प्यार भरी निगाहों को हमें कुछ सा गुमान होता है
देखो ना मुझे इस कदर मदहोश नज़रों से कि दिल बेईमान होता है...!!!

मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर...!!!
फिर भी तेरा शबाब तेरा ही शबाब है...!!!

नहीं बसती किसी और की सूरत अब इन आँखो में ...!!!
काश कि हमने तुझे इतने गौर से ना देखा होता ...!!!...!!!
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पता नहीं लबों से लब कैसे लगा लेते हैं लोग
तुमसे नजरें भी मिल जाये तो होश नहीं रहता ...!!!

वजह पूछोगे तो सारी उम्र गुजर जाएगी...!!!
कहा ना अच्छे लगते हो तो बस लगते हो ...!!!

हम भटकते रहे थे अनजान राहों में...!!!
रात दिन काट रहे थे यूँ ही बस आहों में...!!!
अब तमन्ना हुई है फिर से जीने की हमें...!!!
कुछ तो बात है सनम तेरी इन निगाहों में...!!!

लिख दूं किताबें तेरी मासूमियत पर
फिर डर लगता है...!!!...!!!...!!!
कहीं हर कोई तेरा तलबगार ना हो जाय ...!!!
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कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे...!!!
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे...!!!


हटा कर ज़ुल्फ़ चेहरे से
ना छत पर शाम को आना...!!!
कहीं कोई ईद ही ना कर ले
अभी रमज़ान बाकी है...!!!


उनको सोते हुए देखा था दमे-सुबह कभी...!!!
क्या बताऊं जो इन आंखों ने शमां देखा था...!!!


यह बात...!!! यह तबस्सुम...!!!
यह नाज...!!! यह निगाहें...!!!
आखिर तुम्ही बताओ
क्यों कर न तुमको चाहें...!!!

कम से कम अपने बाल तो बाँध लिया करो ...!!!
कमबख्त...!!!...!!!
बेवजह मौसम बदल दिया करते हैं ...!!!

वो आँखों से यूँ शरारत करते हैं...!!!
अपनी अदा से भी कयामत करते हैं ...!!!

निगाहें उनकी भी चेहरे से हटती नहीं...!!!
और वो हमारी नजरों से शिकायत करते हैं ...!!!


परवाना पेशोपेश में है
जाए तो किस तरफ...!!!

रौशन शमा के रूबरू
चेहरा है आप का ...!!!

परवाना पेशोपेश में है शायरी

धडकनों को कुछ तो काबू में कर ए दिल...!!!
अभी तो पलकें झुकाई हैं
मुस्कुराना अभी बाकी है उनका...!!!

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मै तो फना हो गया उसकी
एक झलक देखकर...!!!

ना जाने हर रोज़ आईने पर
क्या गुजरती होगी ...!!!

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तोहमते तो लगती रही
रोज़ नयी नयी हम पर...!!!
मगर जो सबसे हसीन इलज़ाम था
वो तेरा नाम था ...!!!

तोहमते तो लगती रही शायरी


जैसे धुऐं के पीछे से सूरज का चमकना...!!!
घने बादलों के पीछे से चाँद का खिलना...!!!
पंखुडियाँ खोलकर कमल का खिलखिलाना...!!!
वैसे घूँघट की आड से तेरा लाजवाब मुस्कुराना...!!!


इस प्यार का अंदाज़ कुछ ऐसा है...!!!
क्या बताये ये राज़ कैसा है;
कौन कहता है कि आप चाँद जैसे हो...!!!
सच तो ये है कि खुद चाँद आप जैसा है...!!!


फ़क़त इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें...!!!...!!!
मैं तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयाँ तक देखूँ ...!!!


नशीली आँखों से वो जब हमें देखते हैं...!!!
हम घबरा कर आँखें झुका लेते हैं...!!!
कौन मिलाये उन आँखों से आँखें...!!!

सुना है वो आँखों से अपना बना लेते हैं...!!!

हुस्न की ये इन्तेहाँ नहीं है तो और क्या है...!!!
चाँद को देखा है हथेली पे आफताब लिए हुए...!!!


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हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना...!!!
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना...!!!


अब तक मेरी यादों से मिटाए नहीं मिटता...!!!
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तेरी आँखें...!!!


नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए...!!!
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है...!!!


जलवे मचल पड़े तो सहर का गुमाँ हुआ...!!!
ज़ुल्फ़ें बिखर गईं तो स्याह रात हो गई...!!!


ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं...!!!...!!!...!!!
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं...!!!


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इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी...!!!
ज़ालिम में और इक बात है इस सब के सिवा भी...!!!


चुप ना होगी हवा भी...!!! कुछ कहेगी घटा भी...!!!
और मुमकिन है तेरा...!!! जिक्र कर दे खुद़ा भी...!!!
फिर तो पत्थर ही शायद ज़ब्त से काम लेंगे...!!!
हुस्न की बात चली तो...!!! सब तेरा नाम लेंगे...!!!


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दिल में समा गई हैं क़यामत की शोख़ियाँ...!!!
दो-चार दिन रहा था किसी की निगाह में...!!!


बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है...!!!
हवाओं रागिनी गाओ मेरा महबूब आया है...!!!

ओ लाली फूल की मेंहँदी लगा इन गोरे हाथों में...!!!
उतर आ ऐ घटा काजल...!!! लगा इन प्यारी आँखों में...!!!
सितारों माँग भर जाओ मेरा महबूब आया है...!!!

नज़ारों हर तरफ़ अब तान दो इक नूर की चादर...!!!
बडा शर्मीला दिलबर है...!!! चला जाये न शरमा कर...!!!
ज़रा तुम दिल को बहलाओ मेरा महबूब आया है...!!!

सजाई है जवाँ कलियों ने अब ये सेज उल्फ़त की...!!!
इन्हें मालूम था आएगी इक दिन ऋतु मुहब्बत की...!!!
फ़िज़ाओं रंग बिखराओ मेरा महबूब आया है...!!!


उनकी बातों का दौर
उनकी आवाज का दीवाना
वो दिन भी क्या दिन थे
जब वो पास थे मेरे
और अजनबी था जमाना...!!!

उसकी कुदरत देखता हूँ तेरी आँखें देखकर...!!!
दो पियालों में भरी है कैसे लाखों मन शराब...!!!

लोग कहते हैं जिन्हें नील कंवल वो तो क़तील...!!!
शब को इन झील सी आँखों में खिला करते है...!!!


चाँद के दीदार को तुम छत पर क्या चले आये...!!!
शहर में ईद की तारीख मुकम्मल हो गयी...!!!

आपको देख कर देखता रह गया...!!!
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया...!!!

आते-आते मेरा नाम-सा रह गया...!!!
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया...!!!

वो मेरे सामने ही गया और मैं...!!!
रास्ते की तरह देखता रह गया...!!!

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये...!!!
और मैं था कि सच बोलता रह गया...!!!

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे...!!!
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया...!!!


चाल मस्त...!!! नजर मस्त...!!! अदा में मस्ती...!!!
जब वह आते हैं लूटे हुए मैखाने को...!!!
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