Motivational poem


https://newadakala.blogspot.in/

मैं अकेला चलता रहा।
न कोई मंजिल थी,
न कोई रास्ता था,
खुद अपनी मंजिल,
अपना रास्ता लिए,
मैं अकेला बढ़ता रहा,
मैं अकेला चलता रहा।
चारों ओर अँधेरा था,
न कोई सवेरा था,
अपने शब्दों का चिराग लिए,
मैं अकेला जलता रहा।
दिन बीत गए,
मैं चलता रहा,
हर शाम नयी सुबह की तलाश में,
मेरा सूरज ढलता रहा,
मैं अकेला चलता रहा।
थक चूका था…. न रो सका,
बेचैनी में न सो सका,
काँटों भरे उस बिस्तर पर,
मैं करवटें बदलता रहा।
मैं अकेला चलता रहा।
थकना न था मुझको,
रुकना न था मुझको,
पसीने में माटी मिला,
अपने माथे मलता रहा।
मैं अकेला चलता रहा।
मैं टिका रहा,
मैं डटा रहा,
रस्ते का हर तूफ़ान,
मुझसे टकरा टलता रहा,
मैं अकेला चलता रहा।
धूप में चलने के बाद,
आखिर आया मेरा मौसम,
पतझड़ का वो मौसम,
सावन में बदलता रहा।
मैं अकेला चलता रहा…।
– विशाल शाहदेव
कोई तो राह होगी…
गुमराह हूँ,चल रहा हूँ,
हताश हूँ, हथेलियाँ मल रहा हूँ,
मंज़िल दिखती नहीं इन धुंधली आँखों से,
लेकिन मेरी भी कोई मंजिल,
और उस मंज़िल की कोई तो राह होगी।
हताश हूँ, हथेलियाँ मल रहा हूँ,
कुछ लकीरें हैं इन हथेलियों में भी
सपने हैं इन नम आँखों में भी,
मुझ फ़कीर की भी सुन ले खुदा,
ऐसी भी कोई दरगाह होगी।
कुछ लकीरें हैं इन हथेलियों में भी
कुछ तो छुपा है इन खामोश पहेलियों में भी,
ज़ज़्बा तो है इन जलते जज्बातों में भी,
समेट सके मुझे खुद में, ऐसी भी कोई बाँह होगी।
कुछ तो छुपा है इन खामोश पहेलियों में भी,
रास्ता तो है इन भुलभुलैयों में भी,
धुंधली पड़ चुकी है तकदीर मेरी,
खुद अपनी किस्मत लिख दूं, ऐसी भी कोई स्याही होगी।
मेरी भी कोई मंज़िल, और उस मंज़िल की,
कोई तो राह होगी, कोई तो राह होगी

Comments